श्रीमद भगवद गीता | SRIMAD BHAGAVAD GITA (HINDI) BOOK PDF FREE DOWNLOAD

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Short Description Of The Book:

The Bhagavad Gita is the oldest and most widely read text of theology in the world. The Bhagavadvita, popularly known as the Gitopanishad, has been the most important book on the subject of yoga since the past more than 5,000 years. Unlike many worldly literatures of the present day, the Bhagavad Gita contains no mental hypothesis of any kind, and is full of knowledge of the soul, the process of bhakti-yoga, and the nature and identity of the Supreme Truth, Sri Krishna. As such, the Bhagavad Gita is the most important text in the world, surpassing all other texts in wisdom and enlightenment. The first word of the Bhagavad Gita is 'Dharma'. Sometimes religion is wrongly understood as religion or belief, but this is not correct. Dharma is that supreme duty or knowledge which elevates our consciousness to a higher level so that it can establish direct contact with the Absolute Truth. It is also called Sanatan Dharma, which is the natural nature of all living beings. Bhagavad Gita begins with the word Dharma – so we can understand from the very beginning that Bhagavad Gita is not about any dogma or fundamentalist ideology. In fact, Bhagavad-gita is a complete science for realizing the Absolute Truth.

War is not a new thing in this world. Thousands of years ago, wars like Kurukshetra used to take place to decide the disagreement between right and wrong and to gain worldly wealth. From ancient times to modern times, not a single day has passed on this earth without a war being fought for some reason or the other. If we see in the history, people have gathered for the greed of wealth and fame, sometimes to prove their superiority, but most of the times it has happened because of meanness. The same series is now repeating itself in this twenty-first century. It appears that war is an inevitable destiny of the fate of their deeds in human civilization. On the other hand, peace is difficult to obtain. Peace is talked about, prayed for, but rarely seen for more than a moment. Everyone's maximum lifetime, however simple it may be, is spent in the struggle to maintain either its social, or political, or economic, or mental, or physical existence. For almost everyone, the temporary absence of any major crisis is called peace. But peace is a state of intelligence, not a condition related to the external affairs of this material world. Peace is an inner feeling. Wisdom of the Vedas - It is said in the Srimad Bhagavatam, Jivo-Jivasya-Jivanam- One living being becomes food for another living being.From the most molecular organisms to the most advanced organisms, one organism is nourished by the destruction of another organism. Therefore, the very basic principle of material existence is fundamentally flawed because it is prone to violence. So peace, for almost all of us, comes from the performance of our assigned work, and the confidence that what we did was right. In this idea lies the subtle distinction between war and peace – what we think is right, or what we are conditioned to believe, is it right? The ability to distinguish between right and wrong, or in some cases virtue and sin, is largely based on the extent of our knowledge from which we draw our conclusions. It is natural that insufficient information leads us to wrong conclusions.

That's why it is in our ultimate interest to find the greatest source of knowledge, to find the knowledge of the ultimate truth and to practice that knowledge. The Bhagavad Gita is probably the most widely read theological text in the world. Whatever knowledge we can get in other Sahrish texts like Dhammapada, Bible, Torah, Quran etc., everything is also available in Bhagavad Gita. But there is also such knowledge in the Bhagavad Gita which cannot be found anywhere else. Therefore Bhagavad-gita is superior to all other branches of knowledge. A glimpse of the vastness of the knowledge of the Absolute Truth as contained in the Bhagavad-gita is presented in these following verses.

पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

भगवद्गीता इस संसार में ईश्वरवाद संबंधी विज्ञान का सबसे पुराना एवं सबसे व्यापक रूप से पढ़ा जाने वाला ग्रन्थ है। गीतोपनिषद्‌ के नाम से प्रख्यात भगवद्वीता, पिछले ५,००० वर्षों से भी पूर्व से योग के विषय पर सबसे मुख्य पुस्तक रहा है। वर्तमान समय के अनेक सांसारिक साहित्यों के विपरीत में, भगवद्गीता में किसी भी तरह की कोई भी मानसिक परिकल्पना नहीं है, और यह आत्मा, भक्ति-योग की प्रक्रिया, और परम-सत्य श्री कृष्ण के स्वभाव एवं पहचान के ज्ञान से परिपूर्ण है। इस रूप में, भगवद्गीता दुनिया का सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, जो प्रज्ञता और प्रबोधन में सभी अन्य ग्रन्थों से ऊँचा है। भगवद्गीता का पहला शब्द ‘धर्म’ है। कभी कभी धर्म को गलत रूप से मजहब या मान्यता समझा जाता है, किंतु यह उचित नहीं है। धर्म वह सर्वोत्कृष्ट कर्तव्य या ज्ञान है जो हमारी चेतना को उच्च स्तर की ओर ले जाता है ताकि वह परम-सत्य के साथ सीधा सम्बन्ध स्थापित कर सके। इसे सनातन धर्म भी कहा जाता है, जो सभी जीवों की स्वाभाविक प्रकृती है। भगवद्गीता धर्म शब्द से प्रारंभ होता है – अत: हम शुरुआत से ही समझ सकते हैं कि भगवद्गीता किसी हठधर्मिता या कट्टरपंथी विचारधारा के बारे में नहीं है। वास्तव में, भगवद्गीता परम-सत्य की अनुभूति करने लिए एक सम्पूर्ण विज्ञान है।

इस संसार में युद्ध कोई नई बात नहीं है। हज़ारो वर्ष पहले भी कुरुक्षेत्र जैसा युद्ध, सही और गलत के बीच की असहमति का निश्चय करने एवं लौकिक धन-सम्पत्ति के लाभ हेतु होते थे। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक, इस धरती पर एक भी दिन ऐसा नहीं बीता है की कहीं पर किसी कारण से युद्ध न हो रहा हो। यदी हम इतिहास में देखें तो लोग धन-सम्पत्ति के लोभ एवं कीर्ति हेतु, कभी कभी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए एकत्रित हुए हैं, लेकिन अधिकतर नीचता से ही हुए हैं। यही श्रृंखला अब इस इक्कीसवी सदी में स्वयं को दोहरा रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि युद्ध मानव सभ्यता में उनके कर्मों के भाग्य का एक अपरिहार्य नियति है। दूसरी ओर, शांति प्राप्त करना कठिन है। शांति पर चर्चा तो होती है, उसके लिए प्रार्थना भी की जाती है, किंतु कदाचित ही क्षणभर से अधिक समय के लिए उसके दर्शन होते हैं। सभी का अधिकतम जीवनकाल, भले ही वह कितने ही सरल क्‍यों न हो या तो अपने सामाजिक, या राजनैतिक, या आर्थिक, या मानसिक, या शारीरिक अस्तित्व को बनाए रखने के संघर्ष में ही कट जाता है। लगभग सभी के लिए, किसी भी बड़े संकटकाल की अल्पकालिक अभाव ही शांति कहलाती है। परन्तु शांति तो प्रज्ञा की एक अवस्था है, ना कि इस भौतिक जगत के बाहरी मामलों से संबंधित कोई दशा। शांति तो एक आंतरिक अनुभूति होती है। वेद-शास्त्रों की प्रज्ञता – श्रीमद्‌ भागवतम्‌ में कहा गया है, जीवो- जीवस्य- जीवनं- एक जीव दूसरे जीव का आहार बनता है। अत्यंत आणविक जीव-राशियों से लेकर सबसे विकसित जीव-राशियों तक, एक जीव का पोषण किसी अन्य जीव के विनाश से ही होता है। अतएव, भौतिक अस्तित्व का आधारभूत सिद्धांत ही मुलत: हिंसाग्रस्त होने के कारण दोषपूर्ण है। अत: शांति, लगभग हम सभी के लिए, अपने निर्दिष्ट कार्य के निर्वाह से, तथा इस विश्वास से प्राप्त होती है कि हमने जो किया, वह सही किया। इसी विचार में युद्ध और शांति के बीच का सूक्ष्म भेद निहित है – जिसे हम सही मानते हैं, या जिस विचार को मानने के लिए हम अनुकूलित हैं, दरसल क्या वह सही है ? सही और गलत, या कुछ मामलों में पुण्य और पाप में अंतर पहचानने की क्षमता, व्यापक रूप से हमारे ज्ञान के विस्तार पर आधारित होती है जहाँ से हम अपने निष्कर्ष निकालते हैं। स्वाभाविक है कि अपर्याप्त जानकारी हमें गलत निष्कर्ष पर पहुंचाती है।

इसलिए ज्ञान के महत्तम स्रोत को खोज निकालना, परम सत्य के ज्ञान को खोज निकालना और उस ज्ञान की साधना करना ही हमारे परम हित में है। सारे विश्व में भगवद्गीता ही संभवत: व्यापक रूप से सबसे अधिक पठित ईश्वरवाद पर आधारित ग्रन्थ है। जो कुछ भी ज्ञान हम अन्य सहृश ग्रन्थों, जैसे कि धम्मपद, बाइबल, तोराह, कुरान आदि में प्राप्त कर सकते हैं, वह सब कुछ भगवद्गीता में भी उपलब्ध है। किंतु भगवद्गीता में ऐसा ज्ञान भी है जिसे और कहीं भी पाया नहीं जा सकता। अतएव भगवद्गीता, ज्ञान के सभी अन्य शाखाओं से उत्कृष्ट है। आगे इन अनुवृत्तियों में भगवद्गीता में निहित परम सत्य के ज्ञान की विस्तीर्णता की एक झलक प्रस्तुत की गई है।

शांति तो एक आंतरिक अनुभूति होती है। वेद-शास्त्रों की प्रज्ञता – श्रीमद्‌ भागवतम्‌ में कहा गया है, जीवो- जीवस्य- जीवनं- एक जीव दूसरे जीव का आहार बनता है। अत्यंत आणविक जीव-राशियों से लेकर सबसे विकसित जीव-राशियों तक, एक जीव का पोषण किसी अन्य जीव के विनाश से ही होता है। अतएव, भौतिक अस्तित्व का आधारभूत सिद्धांत ही मुलत: हिंसाग्रस्त होने के कारण दोषपूर्ण है। अत: शांति, लगभग हम सभी के लिए, अपने निर्दिष्ट कार्य के निर्वाह से, तथा इस विश्वास से प्राप्त होती है कि हमने जो किया, वह सही किया। इसी विचार में युद्ध और शांति के बीच का सूक्ष्म भेद निहित है – जिसे हम सही मानते हैं, या जिस विचार को मानने के लिए हम अनुकूलित हैं, दरसल क्या वह सही है ? सही और गलत, या कुछ मामलों में पुण्य और पाप में अंतर पहचानने की क्षमता, व्यापक रूप से हमारे ज्ञान के विस्तार पर आधारित होती है जहाँ से हम अपने निष्कर्ष निकालते हैं। स्वाभाविक है कि अपर्याप्त जानकारी हमें गलत निष्कर्ष पर पहुंचाती है।

इसलिए ज्ञान के महत्तम स्रोत को खोज निकालना, परम सत्य के ज्ञान को खोज निकालना और उस ज्ञान की साधना करना ही हमारे परम हित में है। सारे विश्व में भगवद्गीता ही संभवत: व्यापक रूप से सबसे अधिक पठित ईश्वरवाद पर आधारित ग्रन्थ है। जो कुछ भी ज्ञान हम अन्य सहृश ग्रन्थों, जैसे कि धम्मपद, बाइबल, तोराह, कुरान आदि में प्राप्त कर सकते हैं, वह सब कुछ भगवद्गीता में भी उपलब्ध है। किंतु भगवद्गीता में ऐसा ज्ञान भी है जिसे और कहीं भी पाया नहीं जा सकता। अतएव भगवद्गीता, ज्ञान के सभी अन्य शाखाओं से उत्कृष्ट है। आगे इन अनुवृत्तियों में भगवद्गीता में निहित परम सत्य के ज्ञान की विस्तीर्णता की एक झलक प्रस्तुत की गई है।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:Srimad Bhagavad Gita
Author:Veda Vyasa
Total pages:43
Language: Hindi
Size:1 ~ MB


Name of the Book is : Srimad Bhagavad Gita | This Book is written by Veda Vyasa | The size of this book is 1 MB | This Book has 43 Pages | The Download link of the book "Srimad Bhagavad Gita " is given Below, you can downlaod Srimad Bhagavad Gita from the below link for free.


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@_ustad

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