Sankshipt Padma Puran Hindi Book Pdf Download
Short Description Of The Book:
In Ramrajya, only the river was Sadambha (with perfect water), the people there were not seen anywhere with Sadambha (conceit or hypocrisy). The women of that state had confusion (gesture or luxury); There was no mention of confusion (mistake or mistake) among the scholars. Only the rivers there used to go through a crooked path, not the people; That is, there was complete absence of crookedness among the subjects.
In the kingdom of Shri Ram, only the night of Krishna Paksha was full of Tama (darkness), there was no Tama (ignorance or sorrow) in humans. The coincidence of Raja was seen only in the women there, not in religious men; That is, due to the excess of religion in human beings, only sattva guna [and not Rajo guna] was used. The people there were blind due to wealth (we were saved from being blind); His food was not anandha (grainless). The only chariot in that kingdom was 'anaya' (iron-free); There was no sense of 'anay' (injustice) among the Rajkarmacharis. The rod (danda) was seen only in furs, shovels, chavars and umbrellas; Elsewhere, anger or bondage-born punishment was not seen anywhere.
While looking at the face of Sitapati Shriramji, people's eyes would become fixed, they used to keep looking at him with fixed eyes. Everyone's heart was constantly filled with compassion.
पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
रामराज्य में केवल नदी ही सदम्भा (उत्तम जलवाली) थी, वहाँ की जनता कहीं भी सदम्भा (दम्भ या पाखण्डसे युक्त) नहीं दिखायी देती थी। उस राज्य की स्त्रियों में ही विभ्रम (हाव-भाव या विलास) था; विद्वानों में कहीं विभ्रम (भ्रान्ति या भूल) का नाम भी नहीं था। वहाँ की नदियाँ ही कुटिल मार्ग से जाती थीं, प्रजा नहीं; अर्थात् प्रजा में कुटिलता का सर्वथा अभाव था।
श्रीरामके राज्य में केवल कृष्णपक्ष की रात्रि ही तम (अन्धकार) से युक्त थी, मनुष्यों में तम (अज्ञान या दुःख) नहीं था। वहाँ की स्त्रियोंमें ही रजका संयोग देखा जाता था, धर्मप्रधान मनुष्यों में नहीं; अर्थात् मनुष्यों में धर्मकी अधिकता होने के कारण सत्त्वगुण का ही उद्रेक होता था [रजोगुणका नहीं] । धन से वहाँ के मनुष्य ही अनन्ध थे (मदान्ध होने से बचे थे); उनका भोजन अनन्ध (अन्नरहित) नहीं था। उस राज्य में केवल रथ ही 'अनय' (लोह-रहित) था; राजकर्मचारियों में 'अनय' (अन्याय) का भाव नहीं था। फरसे, फावड़े, चैवर तथा छत्रों में ही दण्ड (डंडा) देखा जाता था; अन्यत्र कहीं भी क्रोध या बन्धन जनित दण्ड देखने में नहीं आता था। जलों में ही जडता (या जलत्व) की बात सुनी जाती थी; मनुष्यों में नहीं। स्त्रीके मध्यभाग (कटि) में ही दुर्बलता (पतलापन) थी; अन्यत्र नहीं। वहाँ औषधियों में ही कुष्ठ (कूट या कूठ नामक दवा) का योग देखा जाता था, मनुष्योंमें कुष्ठ (कोढ़) का नाम भी नहीं था। रत्नों में ही वेध (छिद्र) होता था, मूर्तियोंके हाथों में ही शूल (त्रिशूल) रहता था, प्रजा के शरीर में वेध या शूलका रोग नहीं था। रसानुभूति के समय सात्त्विक भाव के कारण ही शरीर में कम्प होता था, भय के कारण कहीं किसी को कँपकँपी होती हो- ऐसी बात नहीं देखी जाती थी। रामराज्य में केवल हाथी ही मतवाले होते थे, मनुष्यों में कोई मतवाला नहीं था। तरंगे जलाशयों में ही उठती थीं, किसी के मन में नहीं; क्योंकि सबका मन स्थिर था। दान (मद) का त्याग केवल हाथियों में ही दृष्टिगोचर होता था; राजाओं में नहीं। काँटे ही तीखे होते थे, मनुष्यों का स्वभाव नहीं। केवल बाणों का ही गुणोंसे वियोग होता था, मनुष्यों का नहीं।
सीतापति श्रीरामजीके मुखकी ओर निहारते समय लोगोंकी आँखें स्थिर हो जातीं वे एकटक नेत्रों से उन्हें देखते रह जाते थे। सबका हृदय निरन्तर करुणा से भरा रहता था।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | Sankshipt Padma Puran |
Author: | Gita Press |
Total pages: | 1026 |
Language: | Hindi |
Size: | 1.2 ~ GB |
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