Naitikta Ka Sukh Hindi Book Pdf Download
Short Description Of The Book:
Losing my country at the age of sixteen and becoming a refugee at the age of twenty-four, I have faced great difficulties in my life. When I think about them, it seems that I had neither any means to avoid them nor any good solution was possible for them. Nevertheless, as far as my mental peace and health is concerned, I can claim that I have faced them well.
As a result, I have been able to face those difficulties with all my means – mental, physical, and spiritual. If I was overwhelmed by anxiety, it would have had a bad effect on my health. There were obstacles in my work too. When I look around, I find that it is not only us refugees and displaced community people of Tibet who face difficulties. People everywhere and in every society suffer hardships and calamities, even those who enjoy freedom and material prosperity. In fact, it seems to me that most of the suffering we humans have done is our own.
पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
सोलह वर्ष की अवस्था में अपना देश खो कर एवं चौबीस वर्ष की अवस्था में शरणार्थी बन मैंने अपने जीवन में बड़ी कठिनाइयों का सामना किया है। जब मैं उनके विषय में सोचता हूँ तो लगता है कि उनसे बचने का मेरे पास न तो कोई साधन था न ही उनका कोई अच्छा समाधान संभव था। फिर भी, जहाँ तक मेरी मानसिक शांति एवं स्वास्थ्य का प्रश्न है, में दावा कर सकता हूँ कि मैंने उनका सामना भली भांति किया है।
इसके फलस्वरूप में अपने सारे साधनों-- मानसिक, शारीरिक, एवं आध्यात्मिक के साथ उन कठिनाइयों का सामना करने में सफल रहा हूँ। अगर में चिंता से धराशायी हो जाता, तो मेरे स्वास्थ्य पर इसका बुरा असर होता। मेरे कार्यों में भी बाधा होती। जब अपने आसपास देखता हूँ तो पाता हूँ कि सिर्फ हम तिब्बत के शरणार्थी और विस्थापित समुदाय के लोग ही नहीं कठिनाइयों का सामना करते हैं।
हर जगह एवं हर समाज में लोग कष्ट एवं विपदा झेलते हैं, वे भी जो स्वतंत्रता एवं भौतिक समृद्धि का आनन्द लेते हैं। वास्तव में, मुझे ऐसा लगता है कि हम मनुष्यों का अधिकांश दुःख हमारे स्वयं का किया है। इसीलिए एक सिद्धान्त के रूप में कम से कम इससे बचना संभव है। मैं यह भी देखता हूँ कि सामान्यतया ऐसे व्यक्ति जिनका व्यवहार नैतिक रूप से सकारात्मक होता है, वे ज्यादा प्रसन्न एवम् सन्तुष्ट रहते हैं उन लोगों की तुलना में जो नैतिकता की अवहेलना करते हैं।
इससे मेरी धारणा की पुष्टि है कि अगर हम अपने विचार एवं अपने व्यवहार में बदलाव ला सकें, तो हम न तो सिर्फ कष्ट का सामना ज्यादा आसानी से करना सीखेंगे, हम बहुत सारे दुखों को उत्पन्न होने से भी रोक सकेंगे। में इस पुस्तक में यह दिखाने का प्रयास करूंगा कि पारिभाषिक पद "सकारात्मक नैतिक "व्यवहार” से मेरा क्या तात्पर्य है।
ऐसा करने में मैं मानता हूँ कि नैतिकता एवं सदाचार की सफलता से सामान्यीकरण करना अथवा एकदम निश्चित व्याख्या कठिन है। बहुत ही से विरले, अगर कभी हो भी तो, कोई घटना एकदम श्वेत या श्याम होती हैएक ही कार्य भिन्न परिस्थितियों में भिन्न नैतिकता एवं सदाचार के रंग एवं मात्रा का होता है। उसी समय, यह आवश्यक है कि इसमें हम इस बात पर एकमत हों कि सकारात्मक कार्य क्या है और नकारात्मक कार्य क्या है, सही क्या है और गलत क्या है, उचित क्या है और अनुचित क्या है।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | Naitikta Ka Sukh |
Author: | Dalai Lama |
Total pages: | 183 |
Language: | Hindi |
Size: | 2 ~ MB |
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